कौन है?-
जैसे ही आरव ने मोबाइल की टॉर्च जलाई एकदम से भयानक हँसी रुक गई। हॉल में चार मूर्तियों के सिवा कुछ नही था। आरव भानुप्रताप की मूर्ति के पास आया। चारो मूर्तियाँ जैसे आरव को ही घूर रही थी। वहाँ खडा रहना उसे जरा भी अच्छा नही लगा। वह जैसे ही आगे बढा उसे ठोकर लगी। आरव ने देखा की नीचे फर्श पर किसी की डेडबाडी पडी थी। मोबाइल की लाइट में मृतक को पहचानते हैं आरव के पैरों तले से जमीन खिसक गई वह कोई और नहीं बल्कि मोहन के पिताजी की डेड बॉडी थी। मोहन के पिताजी उसके साथ आए थे तो यहां उनकी डेड बॉडी कैसे हो सकती थी? आरव का दिमाग घूम गया। सारा माजरा समझ में आते ही उसकी हालत पस्त हो गई। इसका मतलब तो यही था कि शैतानी दो उसे झांसा देकर काली हवेली के इस खुफिया कमरे में ले आई है। आरव ज्यादा कुछ सोच पाता उससे पहले उसने देखा की चारो पुतलों ने उसे घेर लिया था। महाराज भानुप्रताप का पुतला उसका हाथ पकड़ कर बोल उठा। "हम तेरा ही इंतजार कर रहे थे लड़के। तेरी मौत के बाद हम आजाद हो जाएंगे। हमेशा के लिए।" सामने खड़ी यशोनंदिंनी आगे आई। पुतलौं को चलताफिरता देखकर आरव के होश उडे गये।
"हमें यकीन था कि एक दिन हम तुम्हें यहाँ जरूर खिंच लायेंगें। क्योंकि तुम्ही वह पंडित हो जिसने नगर की जन्मजात बच्चीयों को नगरवधू मंजुलिका तक पहुचाया था। आज भी हम सब को बेरहेमी से मारने वाली वह लडकी की आत्मा तुम्हारा इंतज़ार कर रही है।" "लेकिन इस जन्म में हमने एसा कोई पाप नही किया!" आरव बोल उठा। "और हम वो पंडित नही रहे जो सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए दूसरो की जान लेता था। आज भी हम यहाँ है तो सिर्फ लोगों की हिफाजत के लिए। हम अपने लिए नही आयें। समझे आप सब। हमें आज कोई हाथ भी नही लगा सकता, क्योंकि हम उसके भक्त है जो संकटमोचन है।" कहकर आरव वहाँ से पीछा छुड़ा कर भागा। तहखाने से आवाजें आ रही थी। पूरी हवेली धनधना रही थी। आरव दरवाजे से बाहर निकल गया। चारों पुतलों ने उसे रोकने की कोशिश नहीं की। बाहर निकल कर आरव ने हवेली का दरवाजा लॉक कर दिया। और वह हवेली के बाहर ही बैठ गया। जोर जोर से दरवाज़ा कोई ठोक रहा था। दरवाजा खोलो बेटा। मुझे साथ लेकर जाओ।" आवाज मोहन के पिताजी की थी। लेकिन आरव वहाँ से उठकर चलने लगा। उसके चहेरे पर सुकून के भाव थे। बुरी आत्मायें उस का बाल भी बांका नही कर पाई थी। यहाँ तक की वह मजुंलिका यानी निर्मोही की मोम को बचाने में कामयाब रहा था। वह एक अच्छी औरत है। और पिछले जन्म में उन्हें अपने कर्मो की सजा मिल गई थी। फिर हर जन्म में उनसे बदला लेना ये बिलकुल सही नही था। आरव जानता था निर्मोही यह सब सुनकर दहल जायेगी। शैतानी रूह को वापस बंद कर दिया यह जानकर उसे राहत होगी। अब उसे ऐसे डरावने सपने नही आयेंगे। क्योंकि सपनों का राज तो खूल गया था। वो अपना बदला मारिया और मार्गरिटा के रुप में पूरा कर चुकी थी। जान बचाकर भागने में कामयाब हुआ आरव अब नीचे सीधे रास्ते पर आ गया था। अपना पसीना पौंछते हुये वह आगे बढने लगा। एक नया सबेरा उसके स्वागत के लिए तैयार था। उस वक्त पीछे हवेली के उस बंद कमरे में गौरी प्रसाद की प्रेतात्मा के चेहरे पर एक रहस्यमय मुस्कान ऊभर आई थी। (संपूर्ण)
मेरा नया उपन्यास कायनात-ए-जिन्न पढकर अपनी राय जरूर बताये।
SABIRKHAN PATHAN
07-Oct-2023 03:21 PM
शुक्रिया
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Varsha_Upadhyay
30-Sep-2023 10:27 PM
Nice one
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SABIRKHAN PATHAN
07-Oct-2023 03:21 PM
शुक्रिया
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madhura
27-Sep-2023 10:11 AM
Awesome
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SABIRKHAN PATHAN
07-Oct-2023 03:21 PM
शुक्रिया
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